लौंग, लौंगा, लौंगा! बैर एक लौंग मेरी आती-पाती ॐ मोहिनी मोहिनी कहाँ चली, हरखु राई कां मचली “ओम कामदेवाय शाकाल शाद्रष दक्ष दशु धारा कुसुम हैं हैं स्वाहा ये हमें उस माध्यम से कनेक्ट होने में मदद करती है जिससे हम जुड़ना चाहते है. By clicking “Settle for All Cookies”, you agree https://claytonrgmlk.tkzblog.com/34724524/considerations-to-know-about-mahavidya